बुद्ध पूर्णिमा क्यों है खास, वैशाली-सारनाथ में ऐसे हुई पूजा

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वैशाली शांति स्तूप का मनोरम दृश्य।

बुद्ध पूर्णिमा अर्थात भगवान बुद्ध की जयंती बुद्धत्व की प्राप्ति और महापरिनिर्वाण दिवस। जिसे बौद्ध धर्म के लोग बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं। भगवान बुद्ध की कर्म भूमि वैशाली और जहां उन्होंने उपदेश दिया वो सारनाथ बौद्ध धर्मावलंबियों और उन्हें मानने वालों के उत्साह के रंग में रंगा दिखा। हालांकि लॉक डाउन और कोरोना के कहर के कारण भीड़ भाड़ और बड़े आयोजन नहीं हो सके। लेकिन जो जहां था वो वहीं कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए बुद्ध को याद किया।
इस क्रम में वैशाली के विवत्ता थाई मंदिर परिसर में कोविड नियमों का अनुपालन करते हुए भगवान को याद कर उनकी प्रार्थना की गई। तो वहीं सारनाथ के म्यांमार बौद्धिष्ट मंदिर में मुख्य पुजारी यू वन्न धजा, यू नयनबला और इनके शिष्य प्रमोद कुमार मौर्य, देव नारायण पुजारी और रवि कुमार सिंह ने भगवान बुद्ध की पूजा की। इस दौरान मुख्य पुजारी यू वन्न धजा और यू नयनबला ने बारी बारी से भगवान बुद्ध के अवतरण और उनके उपदेशों पर प्रकाश डाला। साथ ही वैश्विक महामारी कोरोना से जनहित की मुक्ति की प्रार्थना की।

वाराणसी के सारनाथ में बौद्धिष्ट मंदिर में प्रार्थना करते अनुयायी।

आपको बता दें कि कई धार्मिक स्थलों पर सूर्योदय के बाद बौद्ध झंडा फहराने की भी परम्परा है।
बताया जाता है कि इसी वैशाली में खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध का अस्थिकलश भी मिला था जिसे बाद में सुरक्षा की दृष्टिकोण से पटना संग्रहालय में रखा गया। जिसे जल्द ही वैशाली में स्थापित किये जाने की चर्चा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट वैशाली में बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय जो फिलहाल निर्माणाधीन है इसके पूर्ण होते ही यही स्थापित किया जाएगा।
बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर वैशाली वर्मा मंदिर के सुजीत कुमार और थाई मंदिर के गौरव रत्ना शाक्य ने बौद्ध दर्शन की महत्ता के बारे में बताया।


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