पटना उच्च न्यायालय ने एक बड़ा फैसला दिया है। न्यायालय के इस फैसले से नगर निकाय चुनाव मैदान में कूदे प्रत्याशियों को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने यह साफ कर दिया है बिहार राज्य निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दरकिनार कर सीटों को आरक्षित कर चुनाव कराने में लगा था जो नियम के अनुकूल नहीं है। इस वजह से न्यायालय ने नगर निकाय चुनाव पर फिलहाल रोक लगा दिया है। उच्च न्यायालय का कहना है कि निर्वाचन आयोग जबतक ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया पूरी नहीं कर लेता तब तक अति पिछड़ों के लिए आरक्षित सीट सामान्य माने जायेंगे। हालाकि कोर्ट ने बिहार राज्य निर्वाचन आयोग के लिए एक विकल्प जरूर खुला रखा है। वो ये हैं कि आयोग चाहे तो अति पिछड़ों के लिए आरक्षित सीट को सामान्य घोषित कर चुनावी प्रक्रिया को आगे जारी रख सकता है।
ये फैसला उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस संजय करोल और एस कुमार की बेंच ने सुनाया है। बेंच का कहना है कि नगर निकाय चुनाव को लेकर उच्चतम न्यायालय का का जो नियम है उसका संवैधानिक रूप से पालन बिहार राज्य निर्वाचन आयोग ने नहीं किया है। हालांकि राज्य निर्वाचन आयोग ने पहले ही संकेत दे दिया था की उच्च न्यायालय का जो फैसला होगा वो सर्वमान्य होगा। अब प्रत्याशी चुनाव प्रचार कर पाएंगे या नहीं इस पर जल्द ही निर्वाचन आयोग अधिसूचना जारी कर सकता है। इस पूरे घटना क्रम से एक बात तो साफ हो गई की प्रत्याशियों को बड़ा झटका लगा है। जिसमें आर्थिक रूप से लेकर शारीरिक और मानसिक रूप से भी प्रत्याशियों के हौसले टूट गए हैं।
देखिए ये है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में अतिपिछड़ों के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती। ट्रिपल टेस्ट के नियम के तहत ओबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़े जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग के सिफरिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत हैं।
साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि एससी/एसटी/ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों का पचास प्रतिशत की सीमा को नहीं पार करें।