वैशाली जिला का लालगंज, वैसे तो गुमनाम एक ऊंघता हुआ बर्बाद ना मालूम सा कस्बा, मगर इसके इतिहास के पन्नों में वक्त ने कुछ अनमोल धरोहरों के नगीने जड़ रखे हैं। इन्हीं में से एक लालगंज के गौरव को आज की तारीख में भी अपनी तमाम बदहाली के बावजूद रौशन कर रहा है रेपुरा स्थित नानक शाही गुरुद्वारा।
अतिक्रमण, सरकारी उपेक्षा और अपनी ही गौरवमयी विरासत से महरूम प्रबुद्धजनों की नासमझी की मार से जर्जर इस अद्भूत सांस्कृतिक ऐतिहासिक विरासत की बाबत जानकारी जुटाये तो चौंक उठेंगे। तकलीफदेह हकीकत यह है कि पर्यटन विभाग ने भी कभी इस पर झांका तक नहीं। यानी पुरुसाहाल वरना इसका काया कल्प होगया होता, और यह एक बेजोड़ धार्मिक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो चुका होता, और लालगंज की रौनक में चार चांद लगते। इसकी बाबत जानकारी जुटाने पर पता चाला कि हमलोग कितनी अद्भुत धरोहर के इतिहास से अनजान हैं।
यहाँ एक जिंदा समेत छह सन्तों ने ली थी समाधि
करीब चार एकड़ में फैले और छह संतों की समाधि स्थल को संजोए नानक शाही गुरुद्वारा सिख धर्म ही नहीं बल्कि हिंदुओं की भी आस्था का केंद्र है। करीब चार सौ वर्ष का इतिहास अपने अंदर समेटे इस गुरुद्वारा में जिसने भी सच्चे दिल से माथा टेका, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण हुई। यही वजह है कि आज भी इस गुरुद्वारा में देश के कोने कोने से सिख समुदाय के लोगों का आना-जाना लगा रहता है। वर्तमान में यह गुरुद्वारा पटना तख्त श्री हरमंदिर साहिब द्वारा संचालित होता है।
लालगंज में तीन साल रुके थे गुरु गोविंद सिंह
बताया जाता है कि गुरुनानक देव के प्रथम पुत्र श्रीचन्द महाराज ने तकरीबन 1575 ईस्वी में इसकी स्थापना की थी। तिब्ब्त यात्रा से लौटने के क्रम में गुरुनानक देव चार महीने यहाँ बिताये थे। वहीं गुरुगोविंद सिंह ने लालगंज में करीब 3 साल बिताया। इस गुरुद्वारा की सबसे अनमोल धरोहर गुरु ग्रन्थ साहिब नामक 1706 पृष्ठ की पुस्तक है। ईसके ऊपरी हिस्से पर सोने का पानी चढ़ा है। जिसे सिख धर्म के मुख्य पाँच गुरुओ ने एक-एक कर लिखा था।
अति दुर्लभ गुरु ग्रंथ साहिब व शंख है यहाँ की शान
गुरुद्वारा कमेटी के लोगों की माने तो 1952 में हुये भीष्ण अग्नि कांड के दौरान गुरु ग्रन्थ साहिब का बाहरी हिस्सा जल गया था। जिसे बाद में सजाकर उसका स्वरूप छोटा किया गया, जिसका वर्तमान में वजन 35 किलो है। 28 फरवरी 2012 को गुरुद्वारा से चोरों ने इसकी चोरी कर ली। काफी छानबीन के बाद वैशाली जिले के वैशाली प्रखंड के महम्मदपुर गाँव से नौ सितम्बर 2013 को गुरुग्रंथ को बरामद किया गया। जिसके बाद सुरक्षा की दृष्टिकोण से गुरुग्रंथ को श्री तख़्त हरमंदिर साहिब पटना के हवाले कर दिया गया। यहाँ गुरुगोविंद सिंह के जमाने का अति दुर्लभ शंख भी है। जिसके दर्शन को लोग बड़ा सौभाग्य मानते है।
लालगंज में खुदाई के दौरान मिला खंडा और त्रिशूल
बताया यह भी जाता है कि गुरुगोविंद सिंह के पुत्रों को मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर दीवार में चुनवाने के बाद एक युद्ध हुआ था। जिसमें संत नारायण दास महाराज ने मुगल सेना को अपने खंडा और त्रुशुल से परास्त कर दिया था। उस युद्ध के बाद नारायण दास ने इसी नानक शाही गुरुद्वारा में खंडा और त्रुशुल को जमीन में दबा दिया, जो बाद में खुदाई के दौरान मिला, हालांकि अब यह काफी जंग खा चुका है बावजूद इसके वजन से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस वक्त ये कितना वजनी हथियार रहा होगा। संत नारायण दास द्वारा ही गंगा नदी किनारे जुझारपुर समेत चार घाटों का निर्माण किया गया था।
मुगल सेना से युद्ध में विजयी होने पर लगाया गया अशोक का पेड़ आज भी है प्रमाण
गुरुद्वारा कमेटी के सचिव प्रदीप कुमार बताते हैं कि गुरुद्वारा परिसर में एक अशोक का वृक्ष भी है जिसे करीब 300 साल पुराना बताया जाता है। नारायण दास ने मुगल सेना से युद्ध मे विजयी होने के बाद विजय प्रतीक के रूप में इसे लगाया था।
इसी परिसर में गुरुनानक देव के नाम पर एक स्कूल संचालित किया जाता है। जिसका नाम सन्त गुरुनानक कन्या उच्च विद्यालय है। यहाँ गुरु दीक्षा लेने को भी आम बोली में सिख होना कहा जाता है। यह परंपरा उसी वक्त से चालू हुई। मुजफ्फरपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी और इतिहासकार ओ मैली ने 1907 में प्रकाशित मुजफ्फरपुर गजेटियर में लिखा था कि लालगंज इलाके में 22 सिख संगते हैं। अब कालांतर में ये इतिहास के पेट में समा गई, या इनका नाश हो गया। रेपुरा नानक शाही गुरुद्वार किसी तरह गर्दन बचाये खड़ा है। एक और बीच बाजार में है जो भूमाफियाओं के कब्जे में चला गया है।
लालगंज में नहीं बसता को सिख परिवार, फिर भी आस्था अटूट
गौरतलब यह है कि यहां कोई सिख परिवार नहीं बसा है बावजूद इसके हिंदुओं ने ही इस गुरुद्वारे को अपनी थाती मानकर बड़े स्नेह प्यार से सहेज कर रखा है। यह है असली गंगा जमुनी तहजीब का नमूना न कि नेताओं द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाला घिसा पीटा मुहावरा। सिख समुदाय के लोगो का मानना है कि इस गुरुद्वारे में गुरुनानक देव और बाबा हरनाम दास की आत्मा निवास करती है। दोनों गुरुओं की कृपा बरसती है और सच्चे दिल से मांगी गई सभी मनोकामनाएं यहाँ पूर्ण होती है। जिसका उदाहरण बिहार के पूर्व आईजी बलजीत सिंह भी है। उनकी मांगी गई मन्नत पूरी हुई, और उन्होंने यहां आकर दरबार में अरदास पूरी की।
विधायक संजय कुमार सिंह से बढ़ी उम्मीद
एक बार फिर उम्मीद जगी है कि इसका कायाकल्प होगा। वर्तमान विधायक संजय कुमार सिंह पर्यटन विभाग की विशेष समिति के सदस्य बनाये गए हैं और वे शायद इसका काया कल्प करें इसकी गरिमा बहाल हो। देख भाल का जिम्मा स्थानीय प्रदीप कुमार जैसे कर्मठ लोगों के साथ तख्त श्री हरमंदिर साहिब पटना गुरुद्वारा कमेटी के कंधों पर जाने के बाद उम्मीद बढ़ी है।