वर्मा
बरषा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सुहाए।।
आकाश में बादल हैं…बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं और भगवान राम को वर्षा काल यानी वारिश के मौसम का यह मंज़र परम सुहावना लग रहा है…मगर राम के देश में ही बिहार के वैशाली स्थित इन ऐतिहासिक धरोहरों को यह वर्षाकाल बेहद डरावना लग रहा है..क्योंकि सदियों से इतिहास की मौन गवाही देते इन धरोहरों के चारों ओर प्रशासनिक काहिली का जलजमाव है…इनके चारों ओर नेताओं के झूठे वादों की गाद ही गाद है और अपनी रोज़ी-रोटी की जुगाड़ में लगे आम लोगों की उस अनदेखी के ये शिकार हैं….
आम लोगों की अनदेखी इसलिए,क्योंकि हमारे पुरखों की कहानी कहते इन धरोहरों की हिफ़ाज़त को लेकर आम लोगों के पास न तो अपने लापरवाह प्रतिनिधि के लिए कोई सवाल है और न ही यहां के सुविधापरस्त प्रशासन के लिए उनके भीतर कोई हाहाकार है। बात-बात पर आम लोगों के हितों की क़समें खाने वाले नेता इन धरोहरों की ख़स्ताहाली के बीच अपने सियासी फ़ायदे-नुक़सान के हिसाब में व्यस्त हैं और लोगों के दिये टैक्स के पैसे पर पलने वाले स्थानीय प्रशासन इस वर्षाकाल में अपनी सुविधाओं के झूला झूलने में मस्त हैं।
अभिषेक पुष्करणी के पास स्थित भगवान बुद्ध के अस्थि कलश को सहेजने वाला रैलिक स्तूप पूरी तरह जलमग्न हो चुका है…कभी बूंद-बूंद के लिए तरहसने वाली अभिषेक पुष्करणी की लहरें भी इस बाढ़ के तूफ़ान में उफ़ान मार रही हैं…करीब आठ एकड़ में फैले कोल्हुआ के अशोक स्तम्भ भी पास स्थित यह पोखर भी बाढ़ के पानी में जलमग्न हो गया है…पानी में लगातार होने की वजह से अशोक स्तम्भ और आसपास के छोटे बड़े स्तूप तबाह होने की कगार पर है…पहले कोरोना का रोना और अब बाढ़ की त्रासदी ने स्थानीय व्यापारियों समेत आम लोगों की कमर तोड़कर रख दी है।
<span;>आम घरों में लोग अपने-अपने बाप-दादों की पगड़ी और चीज़ें सेहजकर रखते हैं….मगर अफ़सोस है कि देश का अतीत सुनाते इन धरोहरों को सहेजने की चिंता न तो राजनीति को है…न प्रशासन को है और इन दोनों के ताल से ख़स्ताहाल होते इन धरोहरों को लेकर कहीं कोई मलाल तक नहीं दिखता…हमें-आपको थर्रा देने वाला यह एक बड़ा सवाल नहीं ?