ओलंपिक सेमीफाइनल का वह मुकाबला ऐतिहासिक था। कजाकिस्तान का पहलवान नूर इस्लाम सानायेव मुकाबले में 9-2 से आगे चल रहा था। कुछ देर का ही खेल बचा था। ऐसा लगा मानो बाजी रवि कुमार दहिया के हाथ से निकल जाएगी। लेकिन, रवि कुमार दहिया को यह मंजूर नहीं था। उसने पहले भी तीन बार अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में नूर इस्लाम को पटकनी दी थी। अंकों के आधार पर बहुत पीछे हो जाने के बाद चारों खाने चित करने का विकल्प ही शेष रह गया था। रवि कुमार दहिया ने अपनी सारी ताकत को बाजुओं में समेटते हुए प्रतिद्वंद्वी नूर इस्लाम को अपनी गिरफ्त में ले लिया और उसे धूल में मिलाने का प्रयास किया। रवि कुमार दहिया की मजबूत पकड़ में आने के बाद नूर इस्लाम तिलमिला गया। अपने दांत रवि कुमार दहिया के बाजू में गड़ा दिए। मगर रवि दहिया ने अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी। बेहतर तकनीक और फौलादी इरादों का परिचय देते हुए उस मैच में दहिया ने नूर इस्लाम के दोनों कंधों को जमीन से सटा दिया। इस तरह पिनफॉल आधार पर रवि कुमार दहिया को विजेता बनने का गौरव प्राप्त हुआ। इस जीत के साथ ही रवि कुमार दहिया ने ओलंपिक खेलों की 57 किलो वर्ग में रजत पदक पक्का करते हुए फाइनल में प्रवेश किया। स्वर्ण पदक के लिए उनकी भिड़ंत रूस के विश्व चैंपियन जावुर युगुएव से हुई। वह फाइनल में 4-7 से हार गए। ओलंपिक में रजत पदक जीतने के साथ ही रवि कुमार दहिया देश के दुलारे बन गए।
रवि कुमार दहिया द्वारा जीता गया रजत पदक ओलंपिक खेलों की कुश्ती स्पर्धा में भारत का छठा पदक है। उनसे पहले केडी जाधव ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में कांस्य पदक, सुशील कुमार ने बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक और लंदन ओलंपिक में रजत पदक, योगेश्वर दत्त ने लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक और साक्षी मलिक ने रियो दी जेनेरियो में आयोजित ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। इस तरह रवि कुमार दहिया ओलंपिक खेलों में रजत पदक जीतने वाले भारत के दूसरे पहलवान बन गए हैं।
टोक्यो ओलंपिक में रवि कुमार दहिया ने अपना सफर बड़े ही शानदार तरीके से प्रारंभ किया था। पहले मैच में उन्होंने कोलंबिया के टाइग्रेरोस उरबानो को 13-2 से पराजित किया। अगले मैच में उन्होंने बुल्गारिया के गार्गी वैलेंटिनोव को 14-4 के अंतर से हराया। दोनों में रवि कुमार दहिया ने बेहतर तकनीकी दक्षता के आधार पर जीत हासिल की।
अपने घर से करीब 40 किलोमीटर दूर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में पिछले 12 सालों से पसीना बहा रहे रवि कुमार दहिया का सफर मुश्किलों से भरा रहा। पिता राकेश दहिया भूमिहीन किसान रहे और दूसरों से बट्टे पर जमीन लेकर खेती करते रहे। हरियाणा के पहलवान जब अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जीत हासिल कर देश का नाम रोशन करने लगे तो उसके पिता को भी पहलवानी में उम्मीद की किरण दिखी।
अंतर्राष्ट्रीय नहीं तो राष्ट्रीय ही खेल लेगा तो रेलवे या हरियाणा पुलिस में नौकरी लग जाएगी। इसी उम्मीद के साथ उन्होंने 1982 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले गुरु सतपाल सिंह को अपना 10 वर्षीय बेटा सौंप दिया। फिर बेटे को हर सुविधा दिलाने के लिए राकेश दहिया कई गुना अधिक मेहनत करने लगे। गुरु के मार्गदर्शन और अपनी लगन के बल पर दहिया कुश्ती की नई-नई तकनीकें सीखने लगे। प्रतिभा और मेहनत में कमी न थी। मगर जब भी मुकाबले होते, रवि दहिया अपने प्रतिद्वंद्वी से कमजोर साबित होते । पिता को दिल्ली के खानपान पर विश्वास नहीं हुआ तो गांव से ही घी, दूध, मक्खन और फल रवि दहिया को पहुंचाने लगे। बात तब भी नहीं बनी। उनका स्टैमिना बढ़ नहीं रहा था। एक ऐसा समय भी आया जब सब को लगा कि कुश्ती में रवि के लिए कोई उम्मीद नहीं है। तभी छत्रसाल अखाड़े में सबकी सहमति से रवि दहिया को मेडिकल जांच के लिए भेजा गया। रिपोर्ट आई तो पता चला कि रवि दहिया आयरन डिफिशिएंसी के शिकार हैं। इलाज हुआ तो बात बन गई। कुछ ही दिनों बाद अखाड़े में रवि दहिया की ताकत दिखने लगी। फिर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल जीतने का सिलसिला चालू हुआ। 2015 में अल सल्वाडोर में आयोजित विश्व जूनियर कुश्ती प्रतियोगिता में रवि दहिया ने रजत पदक जीता। 2018 में बुखारेस्ट में आयोजित विश्व अंडर 23 कुश्ती चैंपियनशिप में भी रवि दहिया को रजत पदक मिला। 2020 में नई दिल्ली में आयोजित एशियाई कुश्ती प्रतियोगिता तथा 2021 में आलम आदि में आयोजित एशियाई कुश्ती प्रतियोगिता में रवि दहिया को स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ। 2019 विश्व कुश्ती प्रतियोगिता में रवि दहिया का सफर सेमीफाइनल तक रहा और उन्होंने कांस्य पदक जीता। उनके विजय रथ को उस समय भी विश्व के नंबर एक पहलवान जावुर युगुएव ने ही रोक दिया था।
रवि दहिया ने कड़ी मेहनत, लगन, हिम्मत और संघर्ष पर आधारित अपनी सफलता से देश का नाम रोशन किया है। उनका स्वभाव सरल है। सफलता से वह प्रफुल्लित होते हैं मगर कभी भी सफलता को सिर चढ़कर बोलने नहीं देते। मृदुभाषी रवि दहिया अपनी सफलता का श्रेय अपने प्रशिक्षकों के साथ-साथ अपने पिता को देते हैं। वह कहते हैं कि उनके पिता के संघर्ष की तुलना में उनका संघर्ष कुछ भी नहीं। उन्हें पिता से हर सुविधा प्राप्त हुई और वह सफल रहे। लेकिन, उनके पिता को विरासत में कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ था। तमाम कठिनाइयों से जूझते हुए अपनी हिम्मत और कड़ी मेहनत के बल पर उन्होंने अपने घर के लाल को चैंपियन बनाया है। संघर्ष की अग्नि में तपकर कुंदन बने रवि दहिया पर पूरे देश को गर्व है।
दिलीप कुमार, कवि, लेखक, मोटिवेशनल गुरु और भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी।