यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः …
कहा जाता है जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवी -देवता निवास करते हैं, जहाँ उनकी पूजा नहीं होती है, वहाँ सम्पादित सभी शुभ कर्म भी प्रभावहीन हो जाते है। यहाँ पूजा का मतलब नारी जाति को अगरबत्ती दिखाने से नहीं है बल्कि उन्हें सम्मान देने और समाज में बराबरी का अधिकार देने से है।
किसी भी व्यक्ति वस्तु स्थान या फिर हर वो कार्य जिसके उत्थान की जरूरत पड़ती है तब हम और हमारा समाज विशेष आयोजन के तहत लोगों में जागरूकता के उद्देश्य से उस अविकसित मानसिकता को विकसित करने की दिशा में पहल शुरू करते है।
इसी का एक सजीव उदाहरण नारी सशक्तिकरण या यूं कहें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है।
इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष थीम के साथ मनाया जा रहा है। वुमेन इन लीडरशिप अचिविंग एन इक्वल फ्यूचर इन ए कोविड- 19 वर्ल्ड की थीम पर मनाया जा रहा है। इसके तहत आज के दिन विशेषकर बिहार में यहाँ की सरकार ने 1 लाख से अधिक महिलाओं को कोविड टीका देकर बड़ा सन्देश देने का काम किया है। अब समय है कि ‘शक्ति’ करें शक्ति का प्रयोग।
इस आयोजन के अतीत को देखें तो…
28 फरवरी 1909 में इस दिवस को मनाया गया जिसके बाद सन् 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के एक सम्मेलन में इसे अंतरराष्ट्रीय दर्जा देने की बात कही गयी। दरअसल उस समय महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था इसी परंपरा को समाप्त करने के लिए इस तिथि की शुरुआत हुई और 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा।
कहा जाता है कि…
एक आदमी को पढा़ओगे तो
एक ही व्यक्ति शिक्षित होगा
लेकिन एक स्री को पढ़ाओगे तो
पूरा परिवार होगा।
अब सवाल उठता है कि क्या सिर्फ एक दिन के आयोजन या फिर किसी योजना का निर्माण कर महिलाओं को उनका अधिकार और सम्मान दिया जा सकता है..! अब जरूरत है हर व्यक्ति को अपने नजरिये को दुरुस्त करने की, स्वभाव नहीं सोच बदलने की और सबसे पहले अभिभावकों को अपनी संतान को चारित्रिक दृष्टिकोण से शिक्षित करने की ताकि वे ईश्वर की अनुपम कृति की महत्ता को समझ सकें।
पूजा की कलम से…✍🏻