वैशाली का इतिहास इसे भारतीय इतिहास में एक अनूठी जगह देता है…मगर यहां के इतिहास में शहादत के क़िस्से भी कम नहीं हैं…आजादी की लड़ाई में योगेंद्र शुक्ल, बैकुण्ड शुक्ल की कुर्बानियों से लेकर कारगिल युद्ध और लद्दाख के गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प तक में वैशाली के सपूतों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर एक से बढ़कर एक मिसाल पेश की है।
लद्दाख के गलवान घाटी में भारत चीन सीमा पर हुई हिंसक झड़प में 22 वर्ष के शहीद जयकिशोर की चिता अभी ठंढी भी नहीं हुई थी कि वैशाली के हाजीपुर के नीतेश कुमार की भी बुरी तरह से घायल होने की ख़बर सामने आ गयी। देश के लिए जंग में घायल नीतीश इस समय अपनी ज़िंदगी की जंग लड़ रहे है। नितेश हाजीपुर के सीता चौक के रहने वाले हैं। नीतीश के लिए उनके परिवार ही नहीं, बल्कि पूरा वैशाली के दुआएं मांग रहा है।
16 जून 2020..यही वह मनहूस तारीख़ थी…जिस दिन भारत की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने भारतीय जवानों पर अचानक हमला कर दिया…हमले में बीस जवान शहीद हुए तो कई जवान घायल हो गये…इन्हीं घायलों में से एक सैनिक हैं…नीतेश कुमार।
अजीब सा इत्तेफ़ाक था कि जिस दिन नीतेश कुमार अपनी मातृभूमि को बचाने की कोशिश में लगे हुए थे… उसी दिन उनका नन्हा सा बेटा लक्ष्य अपनी जन्मदिन पर अपने पिता के फ़ोन का इंतज़ार कर रहा था। लेकिन हवलदार नितेश कुमार का फ़ोन जब नहीं आया, तो परिवार वाले बेचैन हो उठे। इसी बेचैनी के बीच अगले ही दिन सेना के अधिकारियों का फ़ोन आया…फ़ोन पर उन अफ़सरों ने नितेश से उनके परिजनों की भी बात करायी।
नीतेश के पिता के सामने जंग का वह मंज़र घूम गया….जिसे उन्होंने कई बार बॉर्डर पर गश्ती करते हुए महसूस किया था। पिता होने के नाते उनकी आंखे अपने बेटे के लिए जहां नम हो गयीं…बतौर रिटायर्ड सैनिक जंग में अपने सैनिक बेटे के घायल होने की खबर ने उनके सीने में गर्व का एहसास भर दिया। इस ख़बर ने भाई की छोती को भी गर्व से भर दिया।
नीतीश के पिता और भाई को हो रहा गर्व का यह एहसास सिर्फ़ किसी परिजन का एहसास भर नहीं है….बल्कि करोड़ों भारतीयों को अपने सैनिकों को लेकर ज़ाहिर होता एक अद्भुत विश्वास भी है। यक़ीन किया जाना चाहिए कि नीतीश सेहतमंद होकर जल्द ही अपने घर लौटेंगे और सीमा पर तैनात सैनिक अपनी ज़मीन की हिफ़ाज़त में किसी ग़ैर की बदनियती को नहीं बख़्शेंगे।